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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

ये पोस्ट सवाल भी है और समस्या भी. (सुधीर तंबोली “आज़ाद”)





"हम किस डगर जा रहे है.."
आन्दोलन अपनी जगह है.,धंधा अपनी जगह..
नया वित्तीय वर्ष शुरू हो गया.,
शराब का ठेका नए - पुराने हाथो में पुनः शुरू हो गया.,
अखबारों., खबरिया चैनलों में प्रसंशा बटोरते विरोध करते कुछ स्थानो पर शराब दुकानों का युवाओ व महिलाओ की टोली..
आगाज़ शानदार अंजाम का खबर आम लोगो को नहीं.
की कैसे विरोध करने वाले एक दिन में ही वहा से हटकर चले गए.?
जानकारों को याद होगा पिछले साल भाटापारा में एक शराब दुकान के लिए लगातार कई दिन तक आन्दोलन हुआ था .,
पर साल २०११-१२ हट गया लेकिन हटा नहीं अपनी जगह से वह शराब दूकान..
क्यों.?
वजह राजनीति और संरक्षण..
क्या मैं सही हु.?
धंधा करने वाले को अपना धंधा चलाना आता है.,
धंधा कौन-कौन करता है समझने वाले समझते है..
की ये सब आखिर होता क्यों है.?
आंशिक शराब बंदी छत्तीसगढ़ में लागु हो चुकी है..
ये आंशिक की वास्तविकता क्या है.?
रायपुर शहर के हर मूख्य मार्ग., स्थानो में चमचमाती शराब दुकाने.,
लोगो का हुजूम उसके सामने नज़र आता है..
युवा., अधेड़ पुरुष लोगो के साथ कदम मिलाते
बच्चे और महिलाये भी यदा कदा वहा नज़र आ ही जाती है.,
खुद में सोच के शर्म लगती है पर पिने वाले तो लत से मजबूर..
"ज़माने से क्या मतलब अपने पैसे का पिते है.,
किसी के बाप से कर्जा थोड़ी लेते है"
आधी रात तक बारों के सामने और आसपास गाडियों का कतार लगा होता है.,
जानने वाले जानते है की अन्दर आधीरात तक कौन महानुभाव जन होते है.?
क्या ये पोस्ट मेरे लिए है.?.......................?????????????

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